गरीब कि सर्दी
गरीब कि सर्दी
बढ़ती सर्दी बदलता मौसम
प्रकृति नव यौवना सिकुड़ता
मानवतन दिवस छोटा लंबी रात।।
भाव भावना जीवन तंगी हालात
सर्व भाव की अभिव्यक्ति मूक ईश्वर
का दोष मात्र दुख में ही याद साथ।।
चेतना जाग्रति जागरण
नाद परम् पुरुषार्थ बराबर भाग्य
भगवान कोकोषता चाहता न्याय।।
तोषक तकिया और रजाई भाग्य नहीं
आवनी पर बिछावन पुआल क्या करे
परमात्मा उसके तो सब प्रिय सबके साथ समान भाव।।
फ़टी जुट बोरियां सर्दी कवच
गांव गरीबी गली मोहल्ले नगर फुटफाथ
कर्म कि व्यख्या करता अमीर गरीबअंतर मात्र।।
सुनी आंखें सुखी आंत सर्द से किटकिटाते दांत
बयां सर्दी का हाल
फिर भी नव सूर्योदय
नव जीवन उत्साह का नव उल्लास।।
जाने कितने ही सरकारी धर्म दान के जल जाएंगे
अलाव कितने कम्बल वितरण लगता स्वांग।।
फिर भी सर्दी में जन साधारण बेहाल
लेखनी बोलती सर्दी में मजबूर मानव संसार कि पड़ताल।।
सर्दी की मर्जी जीवन घुट घुट कर चलता जाता
अपने हाल भाग्य भगवान की नियती न्याय।।
