गृहलक्ष्मी
गृहलक्ष्मी
अपने "घर के उपवन" को वो माली सी करती सिंचित
संवारती, निखारती, रखती उसको पुष्पित, फलित, पल्लवित
अपनी इच्छाओं, आशाओं को सबके हित में करे तिरोहित
अपने सपनों की उड़ान को कर दे घर भीतर सीमित
पत्नी, बहू, माँ, गृहिणी बन कई रूपों में होती विभाजित
कभी कुक, कभी ट्यूटर, तो कभी नर्स में हो जाए रूपान्तरित
सबका "व्यक्तित्व" संवारने में अपना "अस्तित्व" करे वो समर्पित
छोटे बड़े सबकी ज़रूरतों को "निःस्वार्थ" करे परिपूरित
रिटर्न गिफ्ट में चाहती बस सबके "प्यार" से हो पुरस्कृत
मनोप्राण से "मकान" को वो "घर" में कर दे परिवर्तित
इसलिए तो "गृहलक्ष्मी" से करते हैं उसे विभूषित।