गर बबूल हमने बोए
गर बबूल हमने बोए


माता पिता सिखाएंगे जो,
गुण बच्चों में आएंगे।
गर बबूल हमने बोए तो,
आम कहां से खाएंगे।।
प्रथम गुरु है माँ बच्चों की,
वो ही ज्ञान सिखाती है।
विद्यालय जाने से पहले,
बनके गुरु पढ़ाती है।।
जैसा नाच सिखाया जाए,
बच्चे नाच दिखाएंगे।
गर बबूल हमने बोए तो,
आम कहाँ से खाएंगे।।
ऊंगली पकड़ पिता बच्चों की
जिम्मेदार बनाता है।
हिम्मत देता है पग पग पर,
चलना उन्हें सिखाता है।।
अच्छा बुरा पढ़ाता जैसा,
बच्चे पढ़ते जाएंगे।
गर बबूल हमने बोए तो,
आम कहां से खाएंगे।।
शिल्पी बर्तन, भांडे, प्रतिमा,
दीपक, शंख बनाते हैं।
कर से कई खिलौने देखा,
उसके जीवन पाते हैं।।
पर ये सब कच्ची मिट्टी से,
ही लोगों ढल पाएंगे।
गर बबूल हमने बोए तो,
आम कहां से खाएंगे।।
हमको जंग महाभारत की,
सचमुच यही बताती है।
नींव विनाश की जब दुर्योधन,
बनते हैं पड़ जाती है।।
गलत आदतें हमीं नहीं तो ,
कौन "अनंत" मिटाएंगे।
गर बबूल हमने बोए तो,
आम कहां से खाएंगे।।