गणतंत्र दिवस विशेष...
गणतंत्र दिवस विशेष...
उदधि की लहरों से साहिल खुद को भूल गया होगा,
श्रीराम स्पर्श से अहिल्या का पाप ज्यों धुल गया होगा।
माॅं भारती का सीना हर्ष से फुल गया होगा,
जब 19 वर्ष का खुदीराम फांसी पर झूल गया होगा।
फांसी पर लटके हुए गर्दन हमसे पूछ रहे हैं,
जलियांवाला बाग के अनगिन क्रंदन हमसे पूछ रहे हैं।
सोने की चिड़िया कब और कैसे उड़ गई,
पालक संचालक जनता जनार्दन हमसे पूछ रहे हैं।
जब पास हमारे पन्ना जीजा की तरुणाई थी,
साहसी दुर्गावती और वीरांगना लक्ष्मीबाई थी।
उधम सिंह-सुखदेव-राजगुरु का उद्भव यहॉं से,
फिर क्यों सिंहजायी धरा असहाय ही कहलायी थी।
यहीं ध्रुव पहलाद के पावन-पुनीत धाम हुए हैं,
पितृभक्त जमदग्नि के ओजस्वी पुत्र परशुराम हुए हैं।
ऋग्वेद की ऋचाओं से लेकर नालंदा तक्षशिला,
और पथ प्रदर्शक श्रीकृष्ण तो कभी श्रीराम हुए हैं।
धर्मों का उद्भव यहीं से ज्ञान का भंडार यहीं से,
जन्म मरण के फेर में मानव का उद्धार यहीं से।
जिस गुलामी की बेड़ियाॅं तोड़ने वर्षों लगीं थीं,
उन बेड़ियों के खन खन करते खनकार यहीं से।
सत्य अहिंसा के मार्ग पर ही आजादी मिली नहीं है,
बर्बादी तब भी थी बर्बादी अब भी टली नहीं है।
बच्चा-बच्चा भगत बने और जन जन में एक सेनानी हो,
हो कोई भी भाषा मुख पर सांसें बस हिंदुस्तानी हो।
भगत-आजाद-तिलक के सपनों का वो भारत लौटाओ,
सहर्ष प्राण त्यागने की वह विशारद महारत लौटाओ।
बहुत हुआ सत्य अहिंसा ज्ञान अज्ञान की बातें,
देवव्रत भीष्म वाला हमें वही आर्यावर्त लौटाओ।
वतन परस्ती चेतक के उस अंतिम छलाॅंग से पूछो,
मौत पर मुस्काते उस तारीख उस पंचांग से पूछो।
जंबूद्वीप के कण-कण में बहती है देशभक्त की धार,
जाओ जरा सिकंदर को रोके उस रोहतांग से पूछो।
पर कटे चिड़िया को प्रेम का पयाम क्यों रहा?
इतने वर्षों तक भारत फिर गुलाम क्यों रहा?
चाणक्य की कूटनीति का ऐसा अपमान क्यों,
गंगा जमुना की जलधार का फीका सा सम्मान क्यों??
हमने लंबे चौड़े 56 इंची महाराणा को सुना है,
पराक्रमी चंद्रगुप्त-अशोक के गुरु दक्षिणा को सुना है।
बच्चे बूढ़े वृद्ध महिलाओं में वतन परस्ती देखा है,
हंसते-हंसते मौत को गले लगाने वाले हस्ती देखा है।
स्वाभिमान बचाने महारानियाॅं जॏहर में कूदा करती थीं,
निज पुत्र को पीठ बांधे वीरांगनाएं लड़ा करती थी।
सम्राटों के ललाट पर कभी कोहिनूर जड़ा करते थे,
शीश जो कटे तो राजपूतों के धड़ अड़ा करते थे।
संपन्नता का प्रतीक यह देश,
क्यों खैराती धर्मशाला हो गया?
गोरी-गजनबी और तैमूर सम लुटेरों से,
स्वर्ण जड़ित सोमनाथ भी कंगाला हो गया...
इतिहास के पन्नों पर हमने केवल कोरे कहानी दी,
ममतामई माताओं ने कितने कुर्बानी दी।
आजादी के हवन कुंड में वीरों ने अपनी जवानी दी,
बच्चों ने बचपन खोया तो नादानों ने नादानी दी।
मानव मानव रहे शुद्धविचारों का सत्यापन हो,
बलिदानों से आजादी मिली आजादी का अनुष्ठापन हो।
बुद्ध महावीर के आचरण प्रदाता,
विश्व गुरुओं में इसी भारत का स्थापन हो।