गंगा घाट
गंगा घाट
गंगा घाट पर देखा है उठती गिरती लहरों को
गंगा घाट पर देखा है बालक के झड़ते बालों को
अस्थि सुखी भी बहती देखी है गंगा तट पर
श्रद्धा की डुबकी देखी है गंगा तट पर
शिव की प्रतिमा के ललाट पर तिलक प्रचंड
शिव के कंठ में विष एकत्रित गंगा तट पर
सिराज डूबता देखा है गंगा तट पर
चंद्र उगता देखा है गंगा तट पर
जलन शील प्रतिज्ञा देखी गंगा तट पर
माया भंग देखा है गंगा तट पर
जीवन का यथार्थ अर्थ देखा है गंगा तट पर
जीवन का निरर्थ भाव देखा है गंगा तट पर
कितने चेहरे देखे है गंगा तट पर
कितनों की अभिलाषा देखी है गंगा तट पर
जीवन से मरण का सफर गंगा तट पर
भय और मुक्ति देखि है गंगा तट पर
मेरे पाप भी लेती जाओ
मेरी आरती सुनती जाओ
सजगता का आभास हो आया गंगा तट पर।