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Dr Narendra Kumar Patel

Abstract

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Dr Narendra Kumar Patel

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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सर्वमंगल मांगल्ये, ऐसी हमारी रीति है।

हां वसुधैव-कुटुंबकम,ये हमारी प्रीति है।।


जान की बाज़ी, लगाकर साथ मेरा दे रहे।

अंगराजा कर्ण जैसे, कुछ हमारे मीत हैं।।


स्वर्ण की पंछी कभी थी, हिन्द की धरती मिरी।

फिर वही संगीत गूंजे,गा रहे हम गीत हैं।।


जिस धरा के शोभना, तुलसी मिरा रसखान हैं।

नानक गुरु व्यास जी की, गूंजती संगीत है।।


इस धरा पर जन्म लेना,'साहिल' पुण्य कर्म है।

रिश्ते गर मधुर हों, तो हार में भी जीत है।।


  


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