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Rekha gupta

Abstract

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Rekha gupta

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गजल

गजल

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जाना किधर है, मंजिल कहाँ है,किसी को पता नहीं,

चल रहे हैं सभी, पर रास्ता पता नहीं।


उनसे मिलकर लगा कुछ ऐसा हमको,

देखा तो है कहीं, पर पहचानते नहीं।


मिलता है तो लगता है दोस्त जैसा,

पर दोस्त के दर्द को समझता नहीं।


हंसी, खुशी, प्यार ढूंढते हैं सभी यहाँ,

भीतर कभी अपने कोई झांकता नहीं।


लगता है जिन्दगी में यूँ तो साथ हैं सभी,

जब साथ चाहिए, तब किसी को किसी से वास्ता नहीं।


जिन्दगी यूँ ही कट जाती है उम्मीद में किसी के,

उम्र भर खुद का खुद से कोई राब्ता नहीं।


नकाबपोश लगता है, हर शख्स यहाँ पर,

अपने दम पर जीने के सिवा कोई रास्ता नहीं।


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