ग़ज़ल..२
ग़ज़ल..२
ज़रा देखो ज़माना आज इक हारा ज़माना है ।
सभी दुबके घरों में मौत से मारा ज़माना है ।।
चिताऍं रोज धूॅं-धूॅं कर जले हैं थाम लो कोई ।
बुझाएं क्यों चिता को देख अंगारा ज़माना है ।।
ख़ुदा-ऐ-हुस्न का दीदार हो तो पूछना उनसे ।
बना के क्यों बिगाड़ा देख बेचारा ज़माना है ।।
भला किसको कहें ये ऱाज दिल के सोचिए ज़ानां ।
ग़मों की इस ख़लिश में डूबता सारा ज़माना है ।।
ख़ुदा की इस नुमाइश पर भला ये बेबसी है क्यों ।
पता कैसे करें कम्बख़्त हरकारा ज़माना है ।।