गिरफ़्त
गिरफ़्त
हम सोचते है जो कभी
ख़्वाब में आप ऐसे तो न थे
हमें याद है अब भी सभी
आप इतने कमसिन भी न थे
अब ना चलती है किसी की
इस हठीले दिल के सामने
आँखें चाहें कहें कुछ भी
तुमको ही अपना माना है हमने
ख़ुदा गर दे ज़रा मोहलत
मिल जाए तन्हाई जहान से
आ जाए ऐसा भी दिलकश दौर
खो जाए उन आँखों की गिरफ़्त से।