गिरहें
गिरहें
गिरह पर गिरह कसती ही जाती
उलझनें यह कैसी, जान पर बन आती
परत पर परत फैलती ही जाती
ज़िंदगी ऐसी नहीं मुझे ज़रा भी भाती
क्या इसी के लिए हमें तू लाती
इस दुनिया में ऐ ज़िंदगी और मुस्कुराती
हम बेचारे जलते रहें बन बाती
क्या मिलती है खुशी तुझे गर बता पाती
क्यों हमें ज़िंदगी भर तरसाती
क्यों जब जी चाहे हम पर कहर तू ढाती
हमारी लाचारी हमारा दिल दुखाती
मगर लगता हमें ऐसा कि तुझे खुश कर जाती
क्या है तेरा मकसद क्या है तेरा खेल बता दे
क्यों बनी मैं तेरा खिलौना बता दे
क्यों मुट्ठी में कस लेती है इतना तो बता दे,
मेरी किस्मत,मेरे सारे अरमान, बता दे-
जवाब मिला '' गिरहों से भी ज़रा प्यार जता दे
उलझनें सुलझेंगी, मन को इतना बता दे
है नहीं इसमें मेरा कुछ लेना देना, इतना चेता दे
है इसमें भला भी तेरा ही, इतना जता दे
गिरहें ही तो हैं ज़िंदगी का पर्याय ज़रा बता दे
हमारी दिशा करे तय, हमारी दशा बता दे
पेचीदा एक ओर, दूजी ओर रहस्य बता दे
उम्र गुज़र जाए तब कहीं जाकर सिखा दे
गहराइयों पर रख नज़र और ज़रा मुस्कुरा दे
बाकी हर चीज़ है छोटी इतना तू जान ले
सवालों की अपनी है जगह इतना मान ले
गिरहों को भी मेहरबां गर तू मान ले
राहें हो जाएंगी आसान, बस तू अगर ठान ले !