STORYMIRROR

Sonam Kewat

Abstract

4  

Sonam Kewat

Abstract

गिरगिट के बदलते रंग

गिरगिट के बदलते रंग

1 min
2.1K

कुछ सख्त हालातों में इंसानों को

जिंदगी से निकलते हुए देखा है।

हाँ, मैंने गिरगिट के जैसे ही,

इंसानों को रंग बदलते देखा है।


देखा है मैंने वो लोग भी जो,

अपनों में अपनेपन की बातें करते हैं।

दिल में कड़वाहट लेकर जाने कैसे,

लोग चेहरे पर मुस्कुराहट रखते हैं।


उनको भी देखा है मैंने जो लोग,

छल कपट से मुझे कभी लूटा था।

इसी तरह मेरा एक जिगरी यार भी,

धोखा देकर मुझसे ही रूठा था।


अच्छा हुआ सब चले गए क्योंकि,

रिश्तो में बैर अब रखना नहीं है।

जो मुझे अंदर से खत्म कर डालें,

ऐसा कोई जहर रखना नहीं है।


वह गिरगिट भी देखा था मैंने,

जो बचाव के लिए रंग बदलता है।

और वो इंसान भी देखा है मैंने जो,

घाव देने के लिए हर रंग में ढलता है।


अब मैं भी सीख रहा हूं गिरगिट से,

कुछ नए रंग में ढ़लता रहता हूं।

मैं घाव देने के लिए नहीं बल्कि,

अपने बचाव के लिए रंग बदलता हूं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract