गिल्लू का प्यार
गिल्लू का प्यार
एक दिन गमले में छोटा सा जीव दिख आया
लहूलुहान नन्हा सा जीव नोंच रहे थे कौए जिसको
गिलहरी का एक छोटा सा बच्चा जो जूझ रहा था
जिंदगी और मौत के बीच कौए उसे नोंच रहे थे
लगता जैसे उसमें अपना सुलभ आहार खोज रहे थे
महादेवी वर्मा ने उसे उठाया प्यारा से दुलार से
घाव पर मरहम लगा कर किया उसका उपचार
रुई की बाती से दूध पिलाया पाला उसे नाजों से
स्निग्ध रोए झब्बेदार पूंछ चमकीली उसकी आँखें
धीरे धीरे बड़ा हुआ नाम दिया फिर उसे गिल्लू
महादेवी वर्मा फूलों की डलिया में उसे सुलाती थी
फूलों की डलिया को प्यार से खिड़की पर लटकाती है
अब आँखों को घुमा घुमाकर उछल कूद वो करती थी
सर्र से परदे पर चढ़ जाती कभी तेजी से उतरती थी
घंटों बैठे महादेवी को एकटक वो देखा करती थी
भूख लगने पर चिक –चिक करती काजू मजे से खाती थी
महादेवी को उसकी ये अठखेलियाँ बहुत ही भाती थी
कभी कभी खिड़की की जाली के पास झांकती रहती
चिक चिक कर बाहर की गिलहरियों को निहारा करती थी
महादेवी ने देख यह दृश्य जाली का कोना काट दिया
तब गिल्लू ने अपने साथियों से मिलकर नया अहसास लिया
कभी खेलती कभी छिप जाती नित्य क्रम यह चलता था
खाना खाते समय महादेवी के संग बैठ एक एक चावल खाती थी
एक दुर्घटना से जब महादेवी हो गई आहत दुःख उसको बहुत हुआ
महादेवी की याद में काजू भी उसको नहीं भाता था
जब महादेवी आई अस्पताल से सिरहाने उसके रहता था
तकिए के सिरहाने बैठ नन्हें नन्हें पंजों से बालों को सहलाता था
गर्मी जब भी उसको लगती सुराही के पास लेट जाता था
जब अंतिम समय आया दिन भर उसने कुछ भी नहीं खाया
महादेवी के साथ बिस्तर पर आकर उंगली पकड़ चिपक गया
पंजे उसके हो गए थे ठंडे अब नए जीवन के लिए हमेशा वह सो गया
सोनजुही की लता के नीचे जहाँ बनी उसकी समाधि थी
जब पीले फूल खिल आते उस पर उसके होने का अहसास होता था I