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डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Inspirational

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डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Inspirational

"गीत कोई गायें"

"गीत कोई गायें"

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आओ ना सखी मिलकर,   

कोई गीत ऐसा गायें ।   

परिवर्तन लिये हो जो वो,   

मधुर राग मिलकर गायें ।   

सम्मान अपना खोजें   

खोया पड़ा है जाने कब से ।   

अनुराग सच्चा पायें ,   

ना मिल सका अभी तक ।   

आओ ना सखी मिलकर ........।   

माटी के खिलौने -सी सखी,   

कब तक यूँ ही चुप रहोगी ।   

मन किया जैसा वैसा ही ,   

सदियों ने खेला उससे ।   

इस रीति को मिटायें हम,   

अस्तित्व अपना पायें ।   

आओ ना सखी मिलकर............।  

 दुर्गा को पूजते हैं हम सब,   

राक्षसों को संहारा जिसने ।   

दुनिया के राक्षसों का चलो,   

संहार करके हम दिखायें ।   

अपमान करने वाले सभी को ,  

 कुछ अच्छा सबक सिखायें ।   

आओ ना सखी मिलकर..........।   

उन नारियों से पूछो जो कि,   

पीछे ही पीछे को जा रही हैं ।   

कहती विकास जिसको वे ,   

आदिम पुरातन सभ्यता है ।   

मजबूरी थी उनकी वे जब ,   

पट ना पाती पूरा बेचारी ।   

अब जितना ही पैसा परिपूर्ण,    

वस्त्र उनके उतने ही हुये अपूर्ण ।    

आओ ना सखी मिलकर.........।   

विकसित कहाने वाली नारी,    

आती हंसी है तुम पर ।    

खुद को ही ना ढांक पाती ,    

विकास क्या करोगी ?    

पायी जो बुद्धि उसका तुम,    

उपयोग कर दिखाओ ।    

खुद भी तुम बढ़ो आगे ,    

बहनों को भी आगे बढ़ाओ ।    

आओ ना सखी मिलकर ...........।                


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