"गीत कोई गायें"
"गीत कोई गायें"
आओ ना सखी मिलकर,
कोई गीत ऐसा गायें ।
परिवर्तन लिये हो जो वो,
मधुर राग मिलकर गायें ।
सम्मान अपना खोजें
खोया पड़ा है जाने कब से ।
अनुराग सच्चा पायें ,
ना मिल सका अभी तक ।
आओ ना सखी मिलकर ........।
माटी के खिलौने -सी सखी,
कब तक यूँ ही चुप रहोगी ।
मन किया जैसा वैसा ही ,
सदियों ने खेला उससे ।
इस रीति को मिटायें हम,
अस्तित्व अपना पायें ।
आओ ना सखी मिलकर............।
दुर्गा को पूजते हैं हम सब,
राक्षसों को संहारा जिसने ।
दुनिया के राक्षसों का चलो,
संहार करके हम दिखायें ।
अपमान करने वाले सभी को ,
कुछ अच्छा सबक सिखायें ।
आओ ना सखी मिलकर..........।
उन नारियों से पूछो जो कि,
पीछे ही पीछे को जा रही हैं ।
कहती विकास जिसको वे ,
आदिम पुरातन सभ्यता है ।
मजबूरी थी उनकी वे जब ,
पट ना पाती पूरा बेचारी ।
अब जितना ही पैसा परिपूर्ण,
वस्त्र उनके उतने ही हुये अपूर्ण ।
आओ ना सखी मिलकर.........।
विकसित कहाने वाली नारी,
आती हंसी है तुम पर ।
खुद को ही ना ढांक पाती ,
विकास क्या करोगी ?
पायी जो बुद्धि उसका तुम,
उपयोग कर दिखाओ ।
खुद भी तुम बढ़ो आगे ,
बहनों को भी आगे बढ़ाओ ।
आओ ना सखी मिलकर ...........।