घरोंदा
घरोंदा
नाजुक दिल हम भी बहुत हैं लेकिन,
गिरा अश्क अपनो को तकलीफ नहीं देंगे।
ये घर,ये मेरा घरोंदा है,
इसमे हर शख्श मेरे से वाबस्ता है,
दो बोल की खातिर इसे उजाड़ तो नहीं देंगे।
ये बातें ये शिकवे न हो तो फिर है क्या मज़ा,
इनकी तल्ख तसीरों को हम चाशनी मे डुबा देंगे।
कुछ झिड़केंगे, मुह फेरेँगे,ताना भी देंगे
हम तो फिर हम हैं साहब सबको मना ही लेंगे।
हाँ वो मुस्कराएंगे
मेरी नादाँ सी कोशिशों पर,
कि कोई कितना भी रूठे हम मना ही लेंगे।
