गहरी सोच
गहरी सोच


यूँ सोच के इतना
अपने ख्यालों को न ज़ाया कर,
वक़्त आज भी है तेरा जैसे छुट्टा हुआ,
न गहराइयों में डूब के
इसे यूँ आज़माया कर।
है ख़ामोशी छायी हर जगह तेरे
तोह किस बात का ग़म है तुझे ?
जो कुछ लोग न रहे तेरे साथ अब
तो क्या ग़म है तुझे ?
है तो लाखों चीज़ें इस दुनिया में
जो बिछड़ जाते है हम से,
कुछ छूट जाते हैं
हथेलियों से रथ की तरह,
कुछ सूखे पत्तों की तरह
हवाओं में उड़ जाते हैं।
यूँ ऐसी गहरी सोच में डूब के
क्या कर पाओगे तुम ?
किसको है आगे की खबर यहाँ ?
हम तो जी रहे हैं ज़िन्दगी
बस पल दो पल यहाँ,
न अफ़सोस है हमें
बीते कल की बातों का,
न दर है हमें
आने वाले कल के सवालों का।