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Dr. Akansha Rupa chachra

Inspirational

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Dr. Akansha Rupa chachra

Inspirational

घर की रोटी

घर की रोटी

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माँ का प्यार बेशुमार रोटी में परोसती

माँ के हाथों की रोटी की बात अलग ही होती!

हल्की-फुल्की, छोटी-बड़ी, पतली-मोटी।

पराठा, रोटी बना कर प्यार उडेलती 

आकार भी इसका गोल होना बचपन से सुनते आए हम।

माँ, बुआ के साथ जब बनाती थी रोटी

तो मुझसे पूरी गोल नहीं थी बनती।

रफ्तार भी होनी चाहिए ऐसे

कि एक हो तवे पर और 

दूसरी चकले पर बन-ठन कर तैयार हो जैसे।


वह बातें पुरानी अब याद आती, 

अब दो से ज्यादा सिकने को तैयार मेरी रोटियाँ होतीं

अनुभव सब कुछ सिखा देता है हर बार,

अनाड़ी से खिलाड़ी बनने के सफ़र से बढ़ती है ज़िंदगी की रफ्तार!

बेलन से बेलकर गोल-मटोल होती है यह तैयार,

तवे पर सिकने के लिए दोनों तरफ से बारंबार ।

हल्के-फुल्के हाथों से फुलाकर बनती है यह गुब्बारा,

आँच से उतारकर घी का चम्मच रोटी पर दे मारा। 

फूलकर बनती है फुलका और थाली में है परोसी जाती,

हर खाने वाले को फिर अपनी माँ की याद ज़रूर है आती!

पापा की भी जी-तोड़ मेहनत की झलक इसमें है पायी जाती,

ईमानदारी की रोटी खाने पर नींद फिर सुकून की आती! 



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