घर द्वार
घर द्वार
घर द्वार सजाकर मां ने रखा
मंदिर की तरह सजाए
बड़े हुए सब लगी नाम की तख्ती
मां का कहीं नाम ही नजर नही आए
रातों की नींद उड़ाई
हर इच्छा मन की मारी
घर द्वार सजाए मगर
अकेली खुद को पाए
पक्षी की तरह हर कोई उड़ जाए
जिसके वास्ते जिए वही छोड़ जाए
हाय रे, जीवन खुद को अकेली मां
घर द्वार में पाए।
