घमंड वाली करना ना काज
घमंड वाली करना ना काज
चार दिन की है ये चाँदनी,
फिर कर्मों का हिसाब।
रे मन सुकर्म तु कर,
घमंड वाली करना ना काज।।
जटायु और संपाती दो गरूड़ ,त्रेता युग में रहते थे।
थे बलशाली दूर-दूर ,जंगल में विचरण करते थे।
हुआ घमंड बल-पंखों पर ,सूरज को छूने उड़ चले।
सूरज के गर्मी से जलकर , दोनों धरा पर गिर पड़े।
ऐसे ही जो घमंड करता है, होता है यही हाल।।
रे मन सुकर्म.........................................।।
कुन्ती पुत्र भीम को भी, एकबार बल पर घमंड हुआ।
रास्ते में वृद्ध वानर बन,हनुमान जी ने फिर सबक दिया।
पूंछ पसारे राह में वे,हरि भजन-कीर्तन में लीन थे।
देखने में बुढ़ा शरीर और जीर्ण-शीर्ण मलीन थे।
कोटि जतन से हिला न पुंछ तो, हुआ घमंड चुर-चुर।।
रे मन सुकर्म.........................................।।
कमलेश तु घमंड ना करियो, नहीं तो तु पछतायेगा।
सोना, चांदी, धन, दौलत सब ,यही पे ही रह जायेगा।
जो गरीबों की सेवा और दुखियों को तूने मदद किया।
वही अच्छे-बुरे कर्मों का ,लेखा-जोखा जायेगा।
फिर भी यदि घमंड करेगा, तो होगा बर्बाद।।
रे मन सुकर्म.........................................।।