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Gazala Tabassum

Abstract

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Gazala Tabassum

Abstract

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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हो कर के बेक़रार ग़ज़ल कह रही हूँ मैं

है इश्क़ का खुमार ग़ज़ल कह रही हूँ मैं


तूफ़ान सा उठा है समंदर में दिल के फिर

शायद मिले क़रार ग़ज़ल कह रही हूँ मैं


महफ़िल सजी हुई है यहां रंग ,नूर की

दिल में है ग़म हज़ार ग़ज़ल कह रही हूँ मैं


दिल में घटा है ग़म की निगाहें बरस रहीं 

मौसम है खुश गवार ग़ज़ल कह रही हूँ मैं


मौसम खिजां का था तो कहीं गुम थी शायरी

आई है फिर बहार ग़ज़ल कह रही हूँ मैं


देने को दाद है यहां महफ़िल भरी हुई

तू कह दे एकबार ग़ज़ल कह रही हूँ मैं।


ग़ज़ाला तबस्सुम


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