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Indu Mishra

Abstract

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Indu Mishra

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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भला जो बशर है भला देखता है

वो नेकी का रस्ता सदा देखता है।

 

भला गर करेगा, भला ही मिलेगा

किताबों में ग़ाफ़िल तू क्या देखता है।


न जाने कहा क्या पहाड़ों से उसने

पलट कर जो आई सदा देखता है। 


भटकता फिरे है गली-दर-गली यूँ

कभी वो न अपना पता देखता है।


उसी के लिये क्यों है बेचैन ये मन

नहीं प्यार से जो ज़रा देखता है।


ख़तावार है जो ख़ता ही करेगा    

सभी के हुनर में ख़ता देखता है।

 

जिसे ज़िंदगी की न कोई क़दर है 

ज़माने को ख़ुद से ख़फ़ा देखता है।


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