गज़ल
गज़ल
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किया है खेल किसने यह बताओ जिंदगानी से
सियासत के खिलाड़ी बच रहे हैं सच बयानी से
*कहाँ* वो जंग लड़ता है *कहाँ* वो वार करता है
जमाना जीत लेता है वो अपनी मीठी बानी से
सभी दावा ये करते हैं हमारा प्यार है सच्चा
मगर बस मात खाते हैं सदा मीरा दीवानी से
*हमारे होंठ कुछ मजबूरियों में खुल ही जाते हैं*
*नहीं चलता है अपना काम कुछ भी बेजुबानी* से
*यहाँ ठहराव लेकर झील मैं यूँ भी नहीं बनती*
*नदी दिल मोह लेती है सदा अपनी* रवानी से
बहुत चाहा लिखूँ सब की व्यथाएँ कोरे कागज पर
मिली फुर्सत कहाँ मुझको कभी अपनी कहानी से
बदलते वक्त ने सब कुछ बदल के रख दिया अब तो
किसी को ढूंढना मुश्किल है अब केवल निशानी से ।
