ग़ुरुर
ग़ुरुर
मुझे ग़ुरुर अपनी मोहब्बत पर था।
जब टूट गया तो हाल-ए-दिल
कोई पूछने न आया।
जवाँ चाह थी, झूमती राह थी,
मस्ती में डूबा हर पल मस्त था।
मुझे यकीन अपनी मोहब्बत पर था
पता नहीं कैसे फ़ासे पलट गये।
गुलाब टुट गया, काँटे चुभ गये
मुझे अपनी यकीन पर यकीन था
मुझे ग़ुरुर अपनी मोहब्बत पर था।
मगर मैं गलत था,
वो मैं नहीं कोई अलग था।