घड़ी व समय
घड़ी व समय
घड़ी की फितरत भी अजीब है,
सदा ही टिक-टिक करती रहती है
ना खुद टिक कर कभी बैठती है
ना दूसरों को चैन से टिकने देती है
समय है कि निकलता जा रहा है
गुजरा पल जिंदगी की मयाद घटाता है
चलो कल यह करेंगे, वह भी करेंगे
इसी धुन में इंसान से वक्त गंवाता है
बदलना होगा जीवन का आचरण
हर पल को कुछ अख़्तियार देने होंगे
वक्त को रोके कैसे ,रुकेगा नहीं कभी
सशक्त, सकारत्मक कदम उठाने होंगे
छोड़ के आलस व निंद्रा का दामन
हर पल, हर दिन को रोशन करना होगा
खुद खुश रहकर, औरों को भी हंसाकर
पल पल को खुशियों से अब भरना होगा
फिर देखो श्रृष्टि कैसे रुख अपना बदलेगी
चिंताएं चाह कर भी संग न टिक पाएंगी
खुद ही रास्ते सहज सुलझ होते जायेंगे
जिंदगी हंसते हंसते गुल खिलाती जायेगी
घड़ी की सूइयों संग रफ्तार मिलाना
जिंदगी का सही आचरण कहलाता है
समय को जिसने समझ लिया, कदर किया
उसी की मुट्ठी में कैद आज सफलता है.....