गांव के मुखिया
गांव के मुखिया
सत्तर की उम्र थी उनकी
मुख पर उनके तेज था
मुखिया थे वो गांव के
और नाम गुरतेज था।
गांव में जो गरीब थे
उनकी मदद वो करते थे
कुछ तो दुश्मन भी थे उनके
किसी से वो न डरते थे।
तीन बेटे भी थे उनके
साथ ही में रहते थे
कमजोर की मदद करो
बेटों को वो कहते थे।
एक बार सूखा पड़ा था
आकाल जैसी स्थिति आई
गांव को पूरा महीना
रोटी घर में थी खिलाई।
पास वाले गांव में वो
काम से एक दिन गए थे
दौरा दिल का पड़ा
मर गए, वो न रहे थे।
लोग सारे थे इकट्ठे
श्रद्धांजलि उन्हें थे देते
दुखी था पूरा गांव ही
रो रहे थे उनके बेटे।
याद उनको करते हैं सब
कोई उन्हें भुला ना पाया
बरगद का एक पेड़ थे वो
गांव को देते थे छाया।
