गांव का मकान
गांव का मकान
गांव का मकान रोता तो होगा
मेरे आने की आस में सोता ना होगा।।
ख़ुद को संभालने की कोशिश करता
घुट घुट के खंडहर होता तो होगा।।
सिपाही बनकर पड़ा ताला भी
अब जंग से जंग लड़ता तो होगा।।
बन्द दरवाज़े खिड़कियां सिसकती तो होगी
पड़ोसियों से थोड़ी आस रखतीं तो होंगी।
कोई तो आए, उन्हें खड़काए फिर अंदर बुलाए
बूढ़ा मकान, फिर से जवानी की आस रखता तो होगा।
वो बरामदे में लगा पीपल बुलाता तो होगा
बचपन को अब भी अपनी डालो में झुलाता तो होगा।।
गांव का मकान बुलाता तो होगा।