एकता की शक्ति
एकता की शक्ति
माना कठिन है डगर
पर मुख तो न तुम मोड़ लो,
यदि कर नहीं सकते अकेले
साथ में किसी को जोड़ लो।
संगठित शक्ति तो नियति निर्माता है
अंगुलियों से बंधी मुठ्ठी ही कहर बरपाता है,
एक और एक होते ग्यारह
भाव जो ये जान लिया।
अडिग रहा जीवन में वो,
पथ से कभी न विमुख हुआ।
