एकमात्र सहायक परमात्मा
एकमात्र सहायक परमात्मा
एक सेठ जी थे। वह मंदिर में गए और वहां पर कथा हो रही थी। कथा कहने वाले एक पंडित जी थे, उन्होंने कहा भगवान हर किसी को खिलाता है फिर चाहे कैसे भी खिलाए पर खिलाता जरूर है। प्रत्येक जीव उसकी संतान है वह सब को एक समान प्रेम करता है।
जब कथा समाप्त होने को हुई, तब सेठ जी ने पंडित जी से कहा कि, आपने अभी कहा भगवान हर किसी को खिलाता है पर ऐसा नहीं है अगर मैं कमाऊं नहीं हाथ पैर चलाऊं नहीं तो मुझे कौन खिलाएगा। हम खुद कमाते हैं, तभी खाते हैं। पंडित जी बोले," ऐसा नहीं है सेठ जी-" वह सब का पिता है, वही हर जीव को खिलाता है। यह हमारा भ्रम है कि हम स्वयं कमाते हैं तभी खाते हैं।
सेठ जी को यह बात लग गई। उन्होंने कहा," ठीक है मैं इस बात को गलत साबित करके रखूंगा। मैं खाना खाऊंगा ही नहीं तब देखता हूं परमात्मा कैसे खिलाएगा।
अगली सुबह वह एक जंगल में चला गया और सोचने लगा देखता हूं आज भगवान मुझे कैसे खिलाते हैं। मैं खाऊंगा ही नहीं। दोपहर में एक व्यक्ति वहां आया, सेठ ऊपर पेड़ पर बैठा ही था, वह व्यक्ति कुछ देर बैठा और चला गया परंतु अपने साथ एक थैला भी लाया था जो वह भूल गया और चला गया। उसमें से भोजन की बडी सुंदर महक आ रही थी, पर सेठ जी ने सोचा नहीं आज मैं देखता हूं कि भगवान किस तरह से मुझे खाना खिलाता है।
शाम होने पर कुछ लुटेरे उसी पेड़ के नीचे आए और उस पेड़ के नीचे उन्होंने वह भोजन भरा थैला देखा ,उन्होंने सोचा इस जंगल में यह किसकी थैली है, देखा तो उसमें भोजन था। चोरों ने सोचा कि जरूर पास ही इसको लाने वाला व्यक्ति भी होगा। उन्होंने पेड़ पर देखा, कि सेठ जी पेड़ पर बैठे हुए हैं। उन्होंने उसको उतारा और कहा इसमें जरूर तूने जहर मिलाया होगा ताकि हम खाएं और यह जहर मिला भोजन खाकर हम सब मर जाएं, और तुम यह लूट का सारा माल अकेले ले सको। सेट बोला नहीं, नहीं यह मेरा भोजन नहीं है। उन्होंने कहा तुम बहुत झूठ बोलते हो हम सब को मारना चाहते हो। सेठ ने कहा नहीं यहां अभी एक व्यक्ति आया था उसी का यह थैला है। उन चोरों ने सेठ की एक भी बात नहीं सुनी और उन्होंने मारकर, डराकर सेठ को वह सारा खाना खिलाया और चले गए।
तब सेठ को यकीन हुआ कि, परमात्मा बहुत शक्तिशाली है वह प्यार से ही नहीं मारकर भी खाना खिलाता है, वास्तव में यही सत्य है। वह हमारा पिता है हम उसके पुत्र हैं वह हमारी सहायता करता है बस हमें उस पर विश्वास नहीं है।
