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Mani Mishra

Romance

4.0  

Mani Mishra

Romance

एकांत से स्वयंबर

एकांत से स्वयंबर

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तुम्हारे हाथ जब मेरे हाथ में होते हैं

तब भूल जाना चाहती हूँ मैं

सारे जोड घटाव,,,,,,,,,,,

उस एकांत को साक्षी मानकर

कर लेना चाहती हूं

कुछ वादे

रचा लेना चाहती हूं

अपने अधिकारों का एक और स्वयंवर

तुम्हारी हंसी जिस पल

केवल मेरे लिए होती है

कैद कर लेना चाहती हूं

हर एक पल, ,,,,,,,,,,,,,,,

बेपरवाह होना चाहती हूं

सब दायित्वों से

कुछ पल ही सही

भूलना चाहती हूँ

सारे नियम धरम, ,,,,,,,,,

होना चाहती हूं वैसी

जैसी अंतस काया है मेरी

नकली नज़ाकत भरी मुस्कान

उतारकर ,,,,,,,

खिलखिलाना चाहती हूं

बिना किसी संशय

बिना किसी संशोधन

बिना किसी स्वार्थ के

जीती हूं, ,,,,,,

जीना चाहती हूँ

तुम्हारे साथ जब होती हूं

तुम्हारा हाथ जब मेरे हाथ में होता है

विश्वास कीमती

और कल्पना कंगाल हो जाती है।



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