तर्पण
तर्पण
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बांध कर दूसरे सिरे पर एक भारी सा पत्थर
फेक दूँगी कुछ सपनो को
गंगा की तेज धार में ..........
जब होगा उन सपनो का पिंडदान
तब मोक्ष मिलेगा मेरे जीवन को ..
ये मृ-तयूदंड सज़ा है तुमहारी
समय पर पूरी ना होने की..
अब तुम अपराधी हो
मेरे अन्तरमन को
उक्साने के ..
तुम भी मर कर पूरे हो जाओगे ..
और ....
मैं भी तरपन कर दूँगी
जीवन की एक और
अपूरणता का .........
