एक तस्वीर
एक तस्वीर


ना रास्ते मालूम थे,
न दुनिया के रंगों से वाक़िफ़ था,
फिर भी दुनिया के सामने
खुद की तस्वीर बनाने निकला था।
बस साथ था तो कुछ कर जाने का जज़्बा,
पर बिना रंगों के इसमें भी कहाँ दम था।
अचानक काले रंग रूपी
दुःख के बादलों ने घेर सा लिया,
तब रंग-बिरंगे सुख के पलों ने
भी मुँह फेर सा लिया।
हम तो सुख की तलाश में थे,
उसे माँगता बस ये मन रहा हैं,
हमें क्या पता था, दुखों को सहते हुए ही
तस्वीर का सही आकार बन रहा है।
कलाकार तो न था, नहीं तस्वीर बनानी आती थी,
इसे बनाते-बनाते न जाने
कितनी बार हाथ फिसला था।
फिर भी दुनिया के सामने खुद की
तस्वीर बनाने निकला था।
एक तस्वीर बनाने निकला था,
कुछ रंगों से क्या होता,
दुनिया के हर रंग को जीना चाहता था,
सफलताओं की जीत के साथ-साथ,
असफलताओं की ठोकरें भी खाता था।
ये मन हमेशा सफलताओं की ही
चाह में बैठा रहता है,
पर जीवन रूपी चेहरे में निखार तो
असफलताओं से ही निखरता हैं।
जितना चमकदार बनना चाहता हूं,
उतना ही घिसता भी चला जाता हूं,
पर अभी भी अपने प्रयत्न रूपी रंगों से
तस्वीर बनाना चाहता हूं।
कभी आत्मविश्वास लिए फिर से चल पड़ता,
तो कभी पूरी तरह से बिखरा था,
फिर भी दुनिया के सामने खुद की
एक तस्वीर बनाने निकला था,
एक तस्वीर बनाने निकला था।