जिंदगी
जिंदगी
अपनी मनपसंद नौकरी लग गई, जितना सोचा था उससे ज्यादा पैसा कमाने लगे हैं, अपना मनपसंद साथी मिल गया, हमारा संघर्ष खत्म हुआ क्यूंकि हमने संघर्ष की बस इतनी ही परिभाषा समझी थी और बस इसी संघर्ष को जिया था। इस संघर्ष के बाद हम बस कभी ना खत्म होने वाला एक सुकून चाहते हैं वो भी खुद में कोई बदलाव न लाने की शर्त पर, कुछ नया ना सीखने की शर्त पर...
बस यहीं हमसे सबसे बड़ी चूक हो जाती है, यही वो दौर है जहाँ से चीज़ें हमारे हाथ से फिसलने लगती है। इस छोटे संघर्ष के बाद एक बड़ा संघर्ष और भी है, ऐसा कभी किसी ने हमसे कहा भी नही, कभी हमने समझा भी नही...
अब क्योंकि हमारा संघर्ष छोटा था और हम अपना सब कुछ पहले ही इस छोटे संघर्ष में झोंक चुके होते है, इसलिए इस संघर्ष के बाद अगर कुछ बचता है तो वो है एक कभी न खत्म होने वाली निराशा...
काश की हम शुरुवात से ही इस सच को जान पाते की यह संघर्ष जिंदगी भर का संघर्ष है, तब हम खुद को मानसिक रूप से इस बड़े संघर्ष के लिए तैयार कर पाते...
अपनी ऊर्जा बचा कर रखने का हुनर सीख पाते, हमें किस प्रतिक्रिया का जवाब देना है किसका नही, हम यह हुनर सीख पाते, दूसरों की रची हर लड़ाई में हमारा कूदना जरूरी नही है, बल्कि हमें केवल हमारी चुनी लड़ाई ही लड़नी है, हम यह हुनर सीख पाते, दूसरों की कमियों से ज्यादा हमारा हमारी अपनी खूबियों पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है, हम यह हुनर सीख पातें, हमारी ज़िंदगी दूसरों की क्रिया से कम हमारी प्रतिक्रिया से ज्यादा प्रभावित होती है हम इस अनूठे सच को जान पाते...
हमारा जिनसे भी वास्ता हैं, वो भी हमारी ही तरह नादान है, हमारी ही तरह अपरिपक्व हैं, हमारी ही तरह खुद में बदलाव के लिए तैयार नही है, उनका संघर्ष भी हमारे संघर्ष की तरह छोटा था, हमारी ही तरह वो भी बस अपने सपनों की दुनियां में ही खोए हैं और इस सपनों की दुनिया से बाहर नही निकल पा रहे, हम इस सच को जान पाते...
अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगा की ज़िंदगी केवल खुद के सपनों को पूरा करने का नाम नही है, स्वार्थी होने का नाम नही है बल्कि अपनी सोच का दायरा बढ़ाकर हमारे सपनों में हमारे अपनों के सपनों को शामिल करने का नाम है...
दो नादान, दो अपरिपक्व लोगों को एक दूसरे की कमियां निकालने की नही, एक दूसरे को दोषी ठहराने की नही बल्कि एक दूसरे का हाथ थामकर इस सफर को पार कर जाने की जरूरत होती है...