कैसे मनाऊँ मैं नया वर्ष
कैसे मनाऊँ मैं नया वर्ष
जब बाग में बुलबुल चहकेगी और कोयल नग़मे गाएगी,
हर फूल पे जब यौवन होगा और कली कली मुस्काएगी,
जब मौसम अँगड़ाई लेगा, हर दिल में जवानी छाएगी,
जब अम्बर झूम के नाचेगा और धरती नग़मे गाएगी,
उस दिन मनायेंगे नया वर्ष, जब रुत पे जवानी छाएगी।
जब पलाश के फूलों से धरती का आँचल पट जाए,
जब शिरीष के फूलों का कालीन बाग में बिछ जाए,
जब सबके मन के उपवन में,मौसम की मादकता छाए,
जब कामदेव आकर, लोगों के दिल पर दस्तक दे जाए।
खेतों में नई फसल नाचे, और झूम झूमकर इतराए,
जब सूरज बहुत सुबह आकर, अपनी अरूणाभा बिखराए,
जब लोग सुबह उठकर मौसम का लुत्फ़ उठाने को जाएँ,
पेड़ों पे लदे फूलों को देख दिल में भी खुशहाली छाए,
उस दिन मनाएँगे नया वर्ष, जब रुत पे जवानी छा जाए।
कैसे मनाऊँ मैं नया वर्ष, क्या नया कहीं कुछ आया है?
तुलसी का पौधा सूख गया है, पारिजात मुरझाया है।
सुबह के आठ बज चुके, अब तक सूरज नजर न आया है।
लगता है वो भी शीत लहर को देख-देख घबराया है।
सब लोग रजाई में दुबके, बागों में सन्नाटा पसरा।
दुबका बैठा है सूरज भी, धरती पर अभी नहीं उतरा।
है फसल वही, खेती भी वही, नभ में भी छाई है बदली,
जो हाल दिसम्बर में ठिठुरन का,उसकी दशा कहाँ बदली?
सिर्फ कलैण्डर बदला है, बाकी तो सभी पुराना है।
चैत्र प्रतिपदा के दिन ही, मुझको नववर्ष मनाना है।
मौसम पर यौवन आएगा, तब ही नववर्ष मनाना है।
जब कृषक झूम के नाचेगा उस दिन नववर्ष मनाना है।