एक पत्रकार
एक पत्रकार
मै बुरा फँसा लोगों की भीड में
सच दिखाऊँ तो जान को खतरा
ना दिखाऊँ तो मानवता शर्मसार होगी
मेरे हर कदम पर मुसीबत है ।
नही बना हूँ किसी अलग मिट्टी हूँ
सच तो जिंदा रहेगा चाहे खतरा हो
नही होने दूंगा मानवता शर्मसार
लोकतंत्र का मजबूत स्तम्भ हूँ मै
मै चलता हूँ तो नेता लोग घबराएं
नही हिम्मत उनमे मुझे रोकने की
किसी के हाथ की कठपुतली नही
जो रोकने की भी कोशिस करे ।
जगती है एक नई उम्मीद,
जब जाता हूँ किसी गाँव में,
मुझे देखकर इकठ्ठे हो जाते है लोग,
यही उम्मीद लेकर शायद अब कुछ हो जाये।
