एक मुसाफिर
एक मुसाफिर
जीने की तरीके,
सब के अलग होते हैं,
फिर भी एक दूसरे के,
गले लग के रोते हैं ।
हर एक दिन परिंदे,
कभी न कभी सोते हैं,
फिर भी जिंदगी भर वो,
मुसाफिर होते हैं ।
बड़े दिनों से मन में,
एक उलझन-सी बैठी है,
बीच रास्ते में ही क्यों,
साथ छूट जाती है ।
फिर मन को समझाता हूँ,
ये कह कर,
की अकेला भी तो,
आदमी मुसाफिर होता है ।
अकेला भी तो आदमी,
एक मुसाफिर होता है ।।
