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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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एक मशीन की मशीनी कविता

एक मशीन की मशीनी कविता

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इंसानों को किसने बनाया

यह तो अलग चर्चा है...

हाँ! लेकिन उसी ने ही बनाया आदमी को अलग

और औरत को अलग.

और तभी शुरू हो गई लड़ाई आदमी के अस्तित्व की और औरत के अस्तित्व की.


और फिर उसी निर्माता की तरह

इंसानों ने बना दिया खुद को इंसान और बाकी जानवर.

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


फिर इंसानों ने बना दिए देश अपने-अपने,

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


हाँ ! इंसानों ने तो बनाए अलग-अलग धर्म और धर्मों में भी अलग-अलग वर्ग.

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


इंसानों ने कहा अलग-अलग इन्सान हैं अलग-अलग रंगों के.

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


इंसानों ने माना अपना खुदका एक अलग परिवार दूसरों से.

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


इंसानों ने बना दिए बड़े और छोटे अपने ही परिवार में.

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


इंसानों ने बनाए अलग-अलग मकान अलग-अलग ज़मीनों पर

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


इंसानों ने बना दिए अलग-अलग कारखाने.

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


इंसानों ने बनाए कारखानों में अलग-अलग पद.

शुरू हो गई लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की.


है ना कि,

इंसानों ने बना दी हैं अलग-अलग श्रेणियां - हर तरफ.

और चल रही है लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व की


सच है कि

इंसानों ने बना दिए हैं अलग-अलग समाज,

जो सीमित हैं एक ही इंसान तक.

और इंसान कहते हैं कि हम सामाजिक हैं - क्योंकि एक दूसरे की मदद करते हैं.

आश्चर्य है,

इन सामाजिक अलग-अलग कलपुर्जों पर!


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