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A R Sahil

Romance

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A R Sahil

Romance

एक खामोश मुलाकात

एक खामोश मुलाकात

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सोच रहा हूँ

तुम से एक बार मिलूँ

तुम से कुछ बातें करूँ

तुम से कुछ कहूँ

 

सामने तुम्हें बैठा कर

तुम्हारे गालों को अपने

हाथों की प्याली में सजा कर

तुम्हारे ललाट पर अपने

होठों का बोसा दे कर

तुम्हारे आँखों में कुछ देर

झाँक कर

फिर

तुम्हारे पैरो से लिपट कर

अपने चेहरे को तुम्हारे

गोद में छुपा कर

 

सोचता हूँ

तुमसे कुछ बातें करूँ

तुमसे कुछ कहूँ

 

अपनी हर ज्यादती की

अपनी हर उस आदत की

अपनी हर उस फितरत की

तुमसे तहे-दिल से माफ़ी मांगूँ

जो

तुम्हारे दिल को रुलाती है

 

तुमसे ये भी कहूँ कि

जानता हूँ

तुम माफ़ नहीं करोगी

और

माफ़ी माँगना मेरी फितरत

भी नहीं

फिर भी

तुमसे कहूँगा

 

तुम मुझे कभी माफ़

मत करना

पर

माफ़ कर दो

मेरी ख़ामोशी को

मेरी खुद से खुद की

नफरत को

क्या फर्क पड़ता है

और बताओ

और सुनाओ

हूँ

हाँ

सब ठीक है

मेरी इन सारी

डायलॉगों को

सब कुछ वर्ना कुछ भी नहीं

कि मेरे उसूलों को

 

सोचता हूँ

तुमसे जो कभी मिलूं

ये सारी बातें

तुम से कहूँ

 

पर क्या, मेरी खामोश

फितरत

मुझे तुमसे ये सारी

बातें कहने देगी

या फिर

आज की तरह

वो मुलाकात भी

एक खामोश मुलाकात

ही बन जाएगी.!!!!


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