STORYMIRROR

aditya mehra

Drama Others

3  

aditya mehra

Drama Others

एक घर ऐसा भी !

एक घर ऐसा भी !

1 min
13.9K


एक और भी था घर मेरा,

परियों का जिस में वास था,

अलग भी था और खास था।


खुली छतें, दरवाजे खुले,

और आंगन वसी,

खुशबु सी थी, जिन में बसी,

रंग था नूर था,

कुछ मौजिज़ा जरूर था।


फासले थे बहुत,

करीबियाँ भी थी मगर,

इतनी रौशनी नहीं थी,

न ये अजब-सा शोर था।


फिर भी सुबह थी नई,

और शाम में सुरूर था,

कुछ अलग-सा जरूर था।


एक और भी घर था मेरा,

जिस में रहता था मैं कभी,

जो भी थी, जैसी भी थी,

एक हस्ती थी मेरी।


शिकायतें थी कुछ,

और कुछ हसरतें,

शायद जो हैं मुझमें,

अभी भी कहीं।


अब ज़िन्दगी जैसी भी है,

शिकायतें तो कम ही हैं,

मगर अभी भी कभी-कभी,

घर में खुद को पाता हूँ अजनबी।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama