एक एक ग्यारह हो
एक एक ग्यारह हो
मन बहुत अकेला हो
जिन्दगी झमेला हो
खूब समस्याएं हों
दर्द की ऋचाएँ हों
सुरमई अंधेरा हो
चम्पई उजाला हो
आँखों का हर आँसू
धैर्य ने संभाला हो
चैन बहुत दूर रहे
मन श्रम से चूर रहे
जीवन की राहों पर
काँटे भरपूर रहें
तरस रहा प्यासा मन
एक बूँद पानी को
और पाँव चाह रहे
वेग को रवानी को
ऐसे में आ कोई
पोर पोर सहला दे
टूटे मन मानस को
साथ मधुर पहला दे
मिल जाये पंखों को
फिर नयी उड़ान कोई
फैले फिर आँखों में
स्वच्छ आसमान कोई
तब समझो मानव के
मन की पौ बारह हो
एक एक ग्यारह हो
एक एक ग्यारह हो ।।