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Dr. Vijay Laxmi

Classics

4  

Dr. Vijay Laxmi

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एक चिंगारी

एक चिंगारी

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एक चिंगारी भड़क शोला बन जाती हैं

दावानल बन अभ्यारण्य जला जाती है

बड़वानल की आग सिन्धु सोख लेती 

चिंता छोटी जीते जी चिता पहुंचा देती 


छोटा फेंका कंकड़ जल में हलचल देता

एक विचार मन को कर विह्वल मथ देता

एक सुप्त बीज जीवन बन वटवृक्ष बनता

एक शक जीवन बदल ज्वालामुखी करता


चिंगारी भड़की मेरठ,स्वतंत्रतासंग्राम बनी

स्वदेशी-स्वदेश का नारा गोरों संग थी ठनी

एक लगन की चिंगारी बालक ध्रुव बनता

सुमिर नाम प्रभु रत्नाकर बाल्मीकि होता


तिनके के सहारे नदी गहरी भी पार होती,

 एक किरण प्रकाश की जग अंधेरा हरती

बूंद-बूंद से सागर भरता,लघु को दें मान

छोटा कह छूटे नहीं,बनता एक आसमान 


एक चिंगारी नफरत की सब खाक करती

प्यार के दो बोल औषधि सम विष हरती

अपमान की चिंगारी महाभारत बनती है

छोटी सी उम्मीद जीवन राह बदलती है

    

दावानल--जंगल में पत्तों की रगड़ से निकली

चिंगारी से लगने वाली आग ।

बड़वानल--समुद्र मे लगने वाली प्रबल आग।


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