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Pranitjaan .

Drama Abstract Inspirational

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Pranitjaan .

Drama Abstract Inspirational

एक बंजारन

एक बंजारन

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एक बंजारन, रास्ते पर,
माथेपर, नसीब की बिंदिया,
पश्चिम में डूबता गोला,
वक्त, कुदरती रौशनी खोता हुअा,
सड़क, आँख से टपके ख्वाब संभालती हुई,
हवाएं, मैले कपड़ों की खुश्बू लेकर इधर-उधर,
हाथ, थके हुए, रूखे से, सूखे से और थोड़े भूखे से...

बैचेन थी शायद, मजबूर भी थोड़ी,
उलझे बालों-सी परेशानियां,
सुलझाने को लड़ी हो शायद,
झुर्रियाँ सुराग दे रहीं थीं,
आँसमा जितना हौसला,
बाँहें छोड़ चुका था,
ज़माने की ताकत,
पैरों तले रौंदी गई थी,
हक़ीक़त ने डस लिया था,
सपनें नंगे होकर रो पड़े थें,
नज़र अभी भी पश्चिम में,
पर आँख के नीचे,
मिट्टी का तेल, माचिस तिली और वादा तोड़े हुए एक लाश...

एक बंजारन...

 


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