एक अनजानी राह..
एक अनजानी राह..
एक अनजानी राह पर चल मैं पड़ी
ऑनलाइन लेखन के क्षेत्र में बढ़ाया जो कदम
जब आई थी दुनिया में मुसीबत की घड़ी
चारों तरफ था सन्नाटा पसरा हरदम
नहीं दिख रहा था कुछ भी आसरा
कोरोना का कहर था फैला हुआ
काम सबके हो गए थे ठप
नहीं मिल सकते थे किसी से भी हम
ऐसे में मन के भावों को
लिखती गई
लेखन की राह पर मैं चल पड़ी
राही मिले कुछ अपने से लगे
राह में अड़चनें जब आती गई
मैं अपने कदम फिर भी बढ़ाती गई
लेखनी से जुड़ी नई राह दिखी
राही मैं भी इस लेखनी के सफर की बन ही गई।