ए खुदा
ए खुदा
ए खुदा अब तो बस कर
थोड़ा तो अब रहम कर,
बैचेन हैं ये नजरें
दहशत में है ये दुनिया,
डर मैं जिंदगी खोए जा रही है
बस उम्मीद है की अब भी बांकी है।
ए खुदा अब तो बस कर
थोड़ा तो अब रहम कर।
हाहाकार है चारों ओर
लाशों से धरती दबी जा रही है,
ना जाने कितने घर बेघर हुए,
ना जाने कितने लोग अनाथ,
अपनों को खोने का दर्द,
सहना तो मुश्किल है अब।
ए खुदा अब तो बस कर
थोड़ा तो अब रहम कर।
ऐसे वक्त की कल्पना
किसी ने ना की थी,
ये कैसा मुश्किल घरी है खुदा
की अपनों के दर्द में भी हम शामिल नही है,
तेरे शफ़क़त का इंतजार है हमें
रूठा क्यूं है खुदा तू।
ए खुदा अब तो बस कर
थोड़ा तो अब रहम कर।
