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Noor Jahan

Abstract

3.9  

Noor Jahan

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दुनिया में जन्नत

दुनिया में जन्नत

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375


दास्तां हमारे मुहब्बत की कैसे बयां करे 

जो सिर्फ एक शख़्स के गिर्द गर्दिश करती है

जन्नत कैसे प्यारा ना हो हमे यह तो बताए कोई 

के वोह जन्नत भी हमारे मांओं के कदमों को चूमती है

क्या लिखे अपनी ज़िन्दगी की दास्तां जो मां की देन है

उस मां के बारे में जितना भी लिखे बेहद कम है

इस दार ए फानी मे रब ने अपनी रहमत हमे बख़्शी है

जिसे हम मां की शक्ल में देखते हैं और ख़ुश होते हैं

अल्फाज़ कम पड़ जाएंगे रब की इस नेमत की बड़ाई में

हम तो मामूली अदना से ज़र्रे हैं हमारी क्या बिसात है 

जो उस मालिक ए मुख़्तार के करिशमे के बारे में कुछ लिख पाए

बस उस रब से है इतनी सी इल्तेजा के हमारी जन्नत को महफूज़ रखे हमेशा

ताकि हम भी इस पाक नेमत से हमेशा सर्फाराज रहैं।


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