दुनिया में जन्नत
दुनिया में जन्नत
दास्तां हमारे मुहब्बत की कैसे बयां करे
जो सिर्फ एक शख़्स के गिर्द गर्दिश करती है
जन्नत कैसे प्यारा ना हो हमे यह तो बताए कोई
के वोह जन्नत भी हमारे मांओं के कदमों को चूमती है
क्या लिखे अपनी ज़िन्दगी की दास्तां जो मां की देन है
उस मां के बारे में जितना भी लिखे बेहद कम है
इस दार ए फानी मे रब ने अपनी रहमत हमे बख़्शी है
जिसे हम मां की शक्ल में देखते हैं और ख़ुश होते हैं
अल्फाज़ कम पड़ जाएंगे रब की इस नेमत की बड़ाई में
हम तो मामूली अदना से ज़र्रे हैं हमारी क्या बिसात है
जो उस मालिक ए मुख़्तार के करिशमे के बारे में कुछ लिख पाए
बस उस रब से है इतनी सी इल्तेजा के हमारी जन्नत को महफूज़ रखे हमेशा
ताकि हम भी इस पाक नेमत से हमेशा सर्फाराज रहैं।