"दुःख, संघर्ष"
"दुःख, संघर्ष"
जब न मिलता है, कोई विकल्प तब चलता है, दिमाग का बल्ब
गर न मिलता, फूल को संघर्ष
कैसे पाता फूल, शूल बीच हर्ष?
वो ही आदमी बनता है, उत्कर्ष
जो गम बीच खिलता है, सहर्ष
जो गर न मिलता, दुःख का वर्ष
सुख का कैसे महसूस होता, वर्ष?
पर मनुष्य बड़ा है, आलसी फर्श
जब तक न महसूस करे, दुःख, दर्द
तब तक न करता है, वो कोई कर्म
कहता है, साखी जीवन में बने, कर्ण
परिस्थिति कोई भी ही, निभाये फर्ज
जितना जलेगा कोई दीपक, आदर्श
उतना फैलाएगा वो, प्रकाश सहर्ष
बिना संघर्ष न बनता है, कोई मर्द