पिता
पिता
मां की महिमा तो सबने गाई,
बाप बेचारा क्यों भूल दिया?
जिसने हमेशा से नव राहें दी,
नई तालीम, नया उसूल दिया।
मां तो रो लेती है तंगी में उनके कंधों पर,
बाप बेचारे ने अपना सब दुख है पिया।
हम बच्चों के लालन - पालन में खोकर,
अपना जीवन भी उसने कहां है जिया?
रोजी रोटी की चिन्ता में रहकर कभी,
कभी बच्चों के सपनों में ही वह जीया।
हो जाए मेरे बच्चे सफल कैसे न कैसे,
इस होड़ में ही अपना सर्वस्व है दिया।
कौन कुचलता है अपने अरमानों को इस कदर?
दूसरों के खातिर,जैसे पुत्र हेतु है पिता ने किया।
फिर भी न जाने इस निष्ठुर समाज ने आखिर,
क्यों पिता के बलिदान को है दरकिनार किया?
वह दफ्तर से लौटा थका हारा मांदा सा,
तलाश सकून की , मां ने परेशान किया ।
लहू तक सुखा देता है वह बच्चों के लिए,
फिर भी कहते हैं कि तुमने क्या किया?
वाह री ओ ! इन्सानी फितरत,क्या गजब?
बे एहसानों सा पल में उसे भुला है दिया।
मुंह का निवाला तक अपने तुझको दिया,
जिसने,तेरे खातिर अपना जीवन जिया।
