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Abhishek Singh

Abstract

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Abhishek Singh

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दश्त और पानी

दश्त और पानी

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अब हमसे और दर्द न संभाला जाएगा

तू अब न आया तो पराया बनता जाएगा


 वो पूछते है जिससे क्या मजबूरियाँ हैं

वो शख़्स और बात को छुपाता जाएगा 


दश्त में आये हो तो पानी की चाहत न रखना

जितना खोजोगे वही वो नज़र आता जाएगा


 निगाहें मिलाने की जगह निगाहें चुराओ उनसे

जितना देखोगे तुम उसे वो तुम्हारा होता जाएगा


उसे जो चाहिए मैं हूं उसी के माफ़िक़ शह

वो मेरे जैसे कि ज़िद में मुझे भी गवाता जाएगा


मैं वही हू जो तुम्हारे घर में तुम्हारे साथ बस्ता हू

मग़र तू मुझे महज़ मंदिरो में ही ढूंढता जाएगा 


कुछ लोग अंधेरो में भी साफ देखते हैं

हमें तो उजाला भी भटकता जाएगा


हमे सतरंज का कमजोर प्यादा समझकर न मारना

जब तुम तक आ गए तुम्हारा माहारथी मारा जाएगा



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