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Kriti Goswami

Abstract Inspirational Others

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Kriti Goswami

Abstract Inspirational Others

दशहरा

दशहरा

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सत्य मैं, असत्य मैं,

पूज्य मैं, परितज्य मैं।

नाद मैं, उन्माद मैं,

मैं ही भय, अवसाद मैं।

मैं प्रकाश, मैं ही अंधेरा,

मैं वीरान, मैं ही बसेरा।।

क्लेश मैं, कलंक मैं

शून्य मैं, अनंत मैं।

पाताल मैं, व्योम मैं,

मै ही हलाहल, सोम मैं।

मैं ही संयम, मैं ही काम,

मैं ही रावण, मैं ही राम।।


खुद को जलाऊँ, खुद ही नाचूँ, 

हारकर अपनी ही विजय गाथा बाँचूं!

अपने बाण से खुद ही को भस्म कर दूँ,

फिर उसी राख से कुम्हार बन खुद को रच दूँ।

तो देव क्या, दैत्य क्या, पाप कौन, पुण्य क्या?

किसकी विजय, किसकी हार,

जयघोष मेरा, मेरा ही तिरस्कार!

मैं अहं, मैं विनीत, मैं ही सीता, मैं मारीच!

मोक्ष मैं, हूँ मैं आत्मा पर पड़ा पहरा,

खुद में खुद का ही चयन है दशहरा।।


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