दरवाज़ा
दरवाज़ा
बुलंद हो, मंदिर, मस्जिद , गिरजाघर में हो।
महल में हो, झोपड़ी में हो
मन का भी हो।
तुम दरवाज़ा हो।
सुंदर चित्रकला, वास्तुशास्त्र का परख,
चित्रकार का हाथ की सफाई हो।
दरवाज़ा नहीं तुम हमारा सुरक्षा कवच हो।
हर प्रांत में निर्माण कौशल अलग, अलग।
रजावत खानदान की प्रवेशद्वार,
देखने से फटी की फटी रह जाएगी आंख।
रात के सन्नाटे में खोलने से डर।
झोपड़ी की बांस की किवाड़,
खोलने से तरंगायित संगीत गान।
कहीं कहीं कारुकार्य बहुत सुंदर और पुरानी।
बुजुर्ग कहते हैं कोई भी अतृप्त,
दरवाज़ा पार करके नहीं आएगा घर के अंदर।
दरवाज़े से पता चलता है हमारी हैसियत।
दरवाज़े मजबूत तो हम चोरी, शत्रुओं, सभी से सुरक्षित।
दरवाज़े से घर की सौंदर्य होती है द्विगुणित।
