दृढ़ निश्चय
दृढ़ निश्चय
यह देह, यह काया, यह आत्मा
समुद्र रूपी दुनिया में एक रहस्य की भांति
जैसे एक सीप के अंदर मोती,
भंवरों और बवंडरों से जूझते हुए,
हर सफर कभी जटिल, कभी निश्चल,
कभी पीछे धकेलते हुए
तो कभी आगे बड़ने के लिए प्रेरित करते हुए,
कभी विस्मित करते हुए तो कभी तितर बितर
हमें कई भावनाओं से घेर लेती है।
ऐसी परिस्थितियों में अस्तित्व कभी डगमगाता तो है
पर कभी ज्ञान तो कभी हिम्मत देकर
हमें मंजिल तक भी पहुंचाता है।
मैं भी इस विशाल सागर में हिचकोले खाते हुए,
अपनी नया की पतवार को संभाले
उस भविष्य की और बड़ती हूं
जो मेरी कल्पनाओं में है।
वह मेरा आने वाला कल
जिसकी में सूत्रधार कहलाऊंगी,
उसकी सशक्त नींव का आवाहन भी
मेरा ही दायत्व है।
मैं सीप में फंसी मोती हूं
और मुझे लहरों संग बहना है,
अपनी प्रवृति को निर्मल रखकर
इस प्रचंड कवच को उतार फेंक
खुद को माला में पिरोना है,
न थकना , न हारना , बस बहते रहना है;
आखरी मंजिल को पाना है
क्योंकि जीवन का उद्देश्य आगे बढ़ना है
जैसे समय का चक्र अपनी प्रकृति पर अटल है,
बिना रुके, बिना लय बदले।
जीवन चक्र खुले आकाश की तरह है
जो पूरे दिन अपना रंग बदलता रहता है;
सूर्योदय का पीला गुलाबी,
आंखें चौंधियाने वाला दोपहर का नीला,
सूर्यास्त का नारंगी व रात की काली चादर
हर रूप सुंदर व शालीन!
आश्चर्यचकित करते हुए जीवन का हर रूप
हमारे कर्मों का प्रायश्चित कराते हुए,
हमें अनुपम आनंद से सम्मुख कराता है
और उस आनंद को मैं जीना चाहती हूं,
अपनी कल्पनाओं को अभिव्यक्त कराने के लिए
जो मेरे इस जन्म का एक अखंड भाग है,
और वही मेरा दृढ़ निश्चय भी.....