दर्द ए मोहब्बत
दर्द ए मोहब्बत
प्रतिबधित है इश्क़ मेरा,
कोई बंधन नहीं अब हमारे दरमियाँ।
नाराज़ है वो मुझसे,
के ताने मारते हैं रहते।
कहते तुम बदल गए,
और खुद खफ़ा रहते।
ज्यादा कुछ नहीं,
एक दोस्त की ख़वाईश थी मेरी, वो भी अब न रही।
याद हर रात सता जाती है
सवेरा आईना दिखाती है।
कहती है ओ पगली,
वो छलिया था तुझे छल गया।
दर्द जिंदगी में भर गया,
वो तो गया अब तू भी आगे बढ़।
इस जिंदगी में सिर्फ तो एक नहीं था,
कई आए कई गए।
फिर वो ही तुझे क्यों इतना याद आए?
पता नहीं क्या रिश्ता है उससे?
ना जाने क्या अलौकिक बंधन है उससे,
के कुछ न होते हुए भी सबकुछ है उससे।
उससे और सिर्फ उसी से,
उसी का होना चाहे मन पर फिर भी हो ना पाए हम।
एक जुनून सा सर पे सवार था मेरे,
आज भी है और कल भी रहेगा।
कुछ यूँ दूर हुए वो हमसे,
के हमारा सब ले गए वो हमसे।
बस अपना और सिर्फ अपना,
बना गए वो हमको।
कुछ अपना छोड़ गए,
कुछ हमारा ले गए।
न जाने क्या रिश्ता था उनसे,
के अपने न होकर भी सिर्फ़ अपना बना गए वो हमको।
कुछ पता नहीं क्या आलम- ए- जिंदगी होती,
शायद खुश शायद नाखुश।
मगर बेज़ार होती ये जिंदगी,
मगर बेज़ार होती ये जिंदगी।